चारधाम का अर्थ है – चार आराध्य, और वे है यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ। यात्रा हमेशा यमुनोत्री धाम से शुरू होकर, गंगोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ धाम पर समाप्त होती है।

ये चार तीर्थस्थल उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हैं जो बर्फ की मोटी परत और आकर्षक वातावरण से घिरे हुए हैं यहाँ का प्राकृतिक वातावरण, या  जड़ी-बूटियाँ सभी को रोग-मुक्त बनाती हैं

हर साल चारधाम यात्रा की तिथि पंडित द्वारा शुभ महूरत पर तय की जाती है जैसे केदारनाथ धाम के उद्घाटन तिथि महाशिवरात्रि पर तय ,बद्रीनाथ धाम के खुलने की तारीखें बसंत पंचमी, और गंगोत्री – यमुनोत्री धाम हर साल अक्षय तृतीय खुलते है ।इसी प्रकार अनुष्ठानों के जाप के साथ सभी धामों के कपट बंद कर दिया जाते है।, यमुनोत्री धाम और केदारनाथ धाम के कपाट भैया दूज के अवसर पर बंद कर दिये जाते हैं, और गंगोत्री धाम गोवर्धन पूजा पर और बद्रीनाथ धाम के समापन की तारीखें विजयदशमी के दिन तय की जाती हैं।

लोगो की मान्यता ह कि यदि कोई व्यक्ति एक बार चारधाम यात्रा कर ले, तो वह उन सभी पापों से मुक्त हो जाता है जो उसने अपने जीवन काल में किए थे और मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त होता है। यह दृढ़ विश्वास हजारों तीर्थयात्रियों को चारधाम यात्रा के लिए प्रेरित करता है।

1. यमुनोत्री धाम

यमुनोत्री धाम वह धाम है जहाँ भक्त अपनी चारधाम यात्रा में सबसे पहले जाते हैं। यह देवी यमुना को समर्पित है जो सूर्य की बेटी और यमराज की जुड़वां बहन थी। यह धाम यमुना के तट पर स्थित है जिसका उधगम स्थल कालिंद पर्वत है। पौराणिक कथाओं के अनुसार – एक बार भैया दूज के दिन, यमराज ने देवी यमुना को वचन दिया कि जो कोई भी नदी में डुबकी लगाएगा उसे यमलोक नहीं ले जाया जाएगा और उसे मोक्ष प्राप्त होगा। और isi कारण यमुनोत्री धाम चारों धामों में सबसे पहले आता है।
लोगों का मानना है कि यमुना के पवित्र जल में स्नान करने से सभी पापों की नाश होता है और असामयिक-दर्दनाक मौत से रक्षा होती है।

यमुनोत्री में आपको मंदिर तक पहुँचने के लिए 5 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होगी।

सर्दियों मे यात्रा दुर्गम हो जाने के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं

ऊंचाई – 10,804 ft.
सर्वश्रेष्ठ समय – मई-जून और सितंबर-नवंबर
दर्शन का समय – सुबह 6:00 बजे से रात 8:00 बजे तक
घूमने के स्थान – दिव्य शिला, सूर्य कुंड, सप्तऋषि कुंड

2. गंगोत्री धाम

यात्रा में अगला प्रमुख धाम गंगोत्री धाम है। यह मंदिर देवी गंगा को समर्पित है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र और सबसे लंबी नदी है। गंगोत्री धाम वह स्थान है जहाँ देवी गंगा पहली बार भागीरथ द्वारा 1000 वर्षों की तपस्या के बाद स्वर्ग से उतरी थीं।

कहा जाता है की देवी गंगा धरती पर आने के लिए तैयार थीं लेकिन इसकी तीव्रता इतनी थी कि पूरी पृथ्वी इसके पानी के नीचे डूब सकती थी। पृथ्वी को बचाने के लिए, भगवान शिव ने गंगा नदी को अपने जटा में धारण  कर नदी को धारा के रूप में पृथ्वी पर छोड़ा और भागीरथी नदी के नाम से जानी गयी।, देवप्रयाग पर गंगा नदी को इसका नाम मिला।
प्रत्येक वर्ष सर्दियों में, गोवर्धन पूजा के शुभ अवसर पर गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते है

गंगोत्री   मैं गाड़ी एक दम अंत तक चली जाती है और कम पैदल चलना पड़ता है।

गंगोत्री से ही गौमुख जाने का रास्ता है। पर अत्यंत कठिन और समय लग रहा है होने के कारण बहुत कम लोग ही गौमुख जाते हैं

ऊंचाई – 11,200 ft.
सर्वश्रेष्ठ समय – मई-जून और सितंबर-नवंबर
दर्शन समय – सुबह 6:15 से दोपहर 2:00 बजे और दोपहर 3:00 से 9:30 बजे
घूमने के स्थान – भागीरथ शिला, भैरव घाटी, गौमुख, जलमग्न शिवलिंग, आदि
कैसे पहुंचे – गंगोत्री धाम पहुंचने के लिये आपको सबसे पहले उत्तरकाशी पहुंचना होगा। उत्तरकाशी पहुंचने के बाद आपको हरसिल और गंगोत्री अगर आप गौमुख जाना हैं तो गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी।
यात्रा मार्ग – यमुनोत्री – ब्रह्मखाल – उत्तरकाशी – नेताला – मनेरी – गंगनानी- हरसिल-गंगोत्री

3. केदारनाथ धाम

यात्रा में तीसरा प्रमुख धाम केदारनाथ धाम है जो 12 ज्योतिर्लिंगों की सूची में, है और पंच-केदार में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। यह धाम हिमालय की गोद में और मंदाकिनी नदी के तट के पास स्थित है जो 8 वीं ईस्वी में आदि-शंकराचार्य द्वारा निर्मित है।
काहा जात है कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे, और इन पापो से मुक्त होने के लिये उन्होंने शिव की खोज शुरू की । परन्तु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । पांडवों से छिपने के लिए, शिव ने खुद को एक बैल में बदल दिया और जमीन पर अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन भीम ने पहचान लिया कि बैल कोई और नहीं बल्कि शिव है और उन्होंने तुरंत बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया। पकडे जाने के डर से बैल जमीन में अंतर्ध्यान हो जाता है और पांच अलग-अलग स्थानों पर फिर से दिखाई देता है- ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ ( जो आज पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है), शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
बहुत से ऐसे प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते…झरने…पहाड़ियां….तेज बहती नदिया…हरे-भरे रास्ते…ये सब मन मोह लेते हैं। और कहीं कहीं पे तो आप सचमुच बादलों के बीच चलते हैं…ये सब अनुभव पैदल मार्ग पर यात्रा कर के ही मिल सकता है!

दीपावली के बाद, सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते है

 

ऊंचाई – 11,755 ft.
सर्वश्रेष्ठ समय – मई-जून और सितंबर-नवंबर
दर्शन समय – दोपहर 3:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक बंद रहता है और बाकी घंटों के लिए खुला रहता है।
घूमने के स्थान – भैरव नाथ मंदिर, वासुकी ताल (8 किमी ट्रेक), त्रिजुगी नारायण, आदि
कैसे पहुंचे – गौरीकुंड अंतिम पड़ाव है जहाँ कोई भी परिवहन वाहन जा सकता है। और गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंचने के लिए आपको 16 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी। अगर आप ट्रेकिंग से बचना चाहते हैं तो आप  गुप्तकाशी / फाटा / गौरीकुंड आदि से हेलीकॉप्टर की उड़ान ले सकते हैं।
यात्रा मार्ग – रुद्रप्रयाग – गुप्तकाशी – फाटा- रामपुर – सीतापुर – सोनप्रयाग – गौरीकुंड – केदारनाथ (16 किमी ट्रेक)

4. बद्रीनाथ धाम
चारधाम यात्रा का चौथा और अंतिम धाम बद्रीनाथ धाम है। यह एकमात्र धाम है जो चारधाम और छोटा चारधाम दोनों का हिस्सा है। बद्रीनाथ मंदिर के अंदर, भगवान विष्णु की 1 मीटर लंबी काले पत्थर की मूर्ति है

कथा के अनुसार – एक बार भगवान विष्णु ने ध्यान के लिए एक शांत जगह की तलाश की और यहाँ भगवान विष्णु अपने ध्यान में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें अत्यधिक ठंड का भी एहसास नहीं हुआ । अतः इस मौसम से बचाने के लिये देवी लक्ष्मी ने खुद को एक बद्री वृक्ष में बदल लिया। देवी लक्ष्मी की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने इस स्थान का नाम “बद्रीकाश्रम” रखा।

बद्रीनाथ में भी गाड़ी अंत तक चली जाती है और आपको अधिक चलना नहीं पड़ता। पहुँचने पर आपको यहाँ भी गर्म कुण्ड में स्नान करने का अवसर मिलता है, जहाँ आप अपनी थकान मिटा कर श्री बद्री विशाल के दर्शन कर सकते हैं।

 

ऊंचाई – 10,170 ft.
सर्वश्रेष्ठ समय -मई-जून और सितंबर-नवंबर
दर्शन समय – सुबह 4:30 बजे से 1:00 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक।
घूमने के स्थान – तप्त कुंड, चरण पादुका, व्यास गुफ़ा (गुफा), गणेश गुफ़ा, भीम पुल, मैना गाँव, वसुधारा जलप्रपात आदि।

यात्रा मार्ग – केदारनाथ – रुद्रप्रयाग – कर्णप्रयाग – नंदप्रयाग – चमोली – बिरही – पीपलकोटी – जोशीमठ – बद्रीनाथ।

इन चार धामों के आलावा भी आप कई ख़ूबसूरत और धार्मिक स्थानों का आनंद उठा सकते हैं:

हर्षिल- इस जगह “राम तेरी गंगा मैली” फिल्म की शूटिंग हुई थी। यह स्थान गंगोत्री जाते वक्त पड़ता है।

चोपता- इस जगह को मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहते हैं, वाकई ये एक बेहद खूबसूरत जगह है। ये जगह केदारनाथ जाते समय पड़ती है।

हनुमान चट्टी- बद्रीनाथ जाते वक्त हनुमान जी के इस मंदिर पर ज़रूर रुकें। यह वही स्थान है जहाँ हनुमान जी ने भीम का अहंकार तोडा था। हुए ये था कि हनुमान जी को रास्ते में बैठे देख भीम ने उन्हें रास्ते से हट जाने को कहा। तब हनुमान जी ने भीम से खुद उनकी पूछ हटाने को कहा और भीम अपनी पूरी ताकत लगा कर भी उनकी पूँछ नहीं हिला पाए।

चारधाम जाने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बाते-

  • चारधाम अप्रैल/मई से नवंबर की शुरुआत तक, केवल छह महीने के लिए खुलता है और अगले छह महीने तक बंद रहता है ।

  •  (जुलाई-अगस्त) के दौरान यात्रा करने से बचने की कोशिश करें क्योंकि भारी बारिश से सड़क के अवरुद्ध होने और भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।

  • यात्रा के दौरान गर्म और ऊनी कपड़े साथ रखें क्योंकि इस क्षेत्र का मौसम हमेशा ठंडा रहता है और ऊंचाई पर तो ठंड ज्यादा बढ़ जाती है।

  • हमेशा अपना मूल पहचान पत्र और अपनी प्राथमिक चिकित्सा किट ले जाएँ।

  • पहाड़ी क्षेत्रो में सूर्यास्त के बाद ड्राइविंग की अनुमति नहीं है, अतः सूर्यास्त के बाद ड्राइविंग करने से बचें।

  • यात्रा के दौरान आपको अपनी जरूरी दवाइयां हमेशा साथ रखनी चाहिए।

  • प्रस्थान के कम से कम एक या दो महीनों पूर्व अपना  होटल्स या पैकेज को प्री-बुक कर लें।

  • यात्रा मार्ग पर, लगभग सभी होटल बुनियादी हैं और केवल कुछ एक डीलक्स श्रेणी के हैं। इन होटलों की किसी भी स्टार श्रेणी से तुलना न करें। (मार्ग होटलों पर चारधाम)

  • चार धाम मंदिर, विशेष रूप से केदारनाथ धाम सभी ऊंचाई पर स्थित हैं और धाम तक जाना एक बहुत ही परीक्षण और शारीरिक रूप से भीषण कार्य माना जाता है।चारधाम यात्रा से पहले उचित स्वास्थ्य -जांच करने और पूर्ण शारीरिक फिटनेस सुनिश्चित करने की सलाह दी जाती है।

 

यमुनोत्री और केदारनाथ दोनों या मंदिर तक पहुँचने के लिए आपके पास कई विकल्प हैं:

⦁ पैदल – पैदल चलते वक्त एक डंडी ले लेना ठीक रहता है, तब भी जब आप एकदम युवा हों। ये डंडी 10रूपये,किराए,पर,मिलती,है।
⦁ खच्चर / घोड़े द्वारा – इसमें आप खच्चर पर बैठ कर जाते हैं और खच्चर वाला आपके साथ-साथ चलता है। अगर आप इस तरह से जाते हैं तो ध्यान रखें कि खच्चर वाला हर समय घोड़े की लगाम पकड़ा रहे।
⦁ बास्केट/ टोकरी या पिट्ठू द्वारा- इसमें आपको एक बास्केट में बैठना होता है जिसे अपनी पीठ पर उठा कर एक बन्दा आपको ऊपर तक ले जाता है। ये सुविधा छोटे बच्चों के लिए श्रेष्ठ है।
⦁ पालकी- इसमें तीन से चार बन्दे एक पालकी पर बैठा कर यात्री को ऊपर तक ले जाते हैं। इसमें भारी-भरकम या उम्रदराज लोग बैठकर जाते हैं।
⦁ हेलीकाप्टर – केदारनाथ में बहुत से लोग हेलीकाप्टर से ऊपर-नीचे यात्रा करते हैं। यहाँ आप चाहें तो एक तरफ की यात्रा पैदल और एक तरफ हेलीकाप्टर से कर सकते हैं। हम लोगों ने चढ़ाई पैदल की थी और लौटे हेलीकाप्टर से थे,
सरकार की तरफ से हर एक सर्विस ( हेलीकॉप्टर को छोड़कर ) के अधिकतम रेट तय किये गए हैं, पर कई बार लोग अपना मनमाना रेट लेने की कोशिश करते हैं। लेकिन यदि आप अपनी यात्रा बहुत सवेरे में शुरू करते हैं तो आपको सही रेट पर पिट्ठू ,खच्चर इत्यादि मिल सकते हैं।

कई लोग ये भी करते हैं कि वे शुरू के कुछ किलोमीटर पैदल चलते हैं और बाद में खच्चर या पिट्ठू कर लेते हैं, तब ये आपको सस्ते मिल जाते हैं, प्रदान की समय अधिक न हुआ हो। यानि किसी भी केस में सुबह-सुबह जल्दी यात्रा शुरू करना ही ठीक रहता है।